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आपके झूठे सहारों का भरम टूट गया / विनोद तिवारी
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आपके झूठे सहारों का भरम टूट गया
हम विवशताओं के मारों का भरम टूट गया
फूल-कलियों से भरे जाएँगे सबके दामन
जब भी आईं तो बहारों का भरम टूट गया
रात यूँ आई कि जुगनूँ भी सितारों-से लगे
रात गुज़री तो सितारों का भरम टूट गया
टक्करें मार के तोड़ेंगे निराशा के पहाड़
ख़ुद जो टूटे तो प्रहारों का भरम टूट गया
आपने ओढ़े थे रंगीन लबादों की तरह
आपके उच्च विचारों का भरम टूट गया
दाँव थे आपके हम लोग महज़ मोहरे थे
भीड़ की जीत का, हारों का भरम टूट गया