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आपस में लड़ कर अक्सर घायल हो जाते हैं / विनोद तिवारी

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आपस में लड़ कर अक्सर घायल हो जाते हैं
इस बस्ती के रहवासी पागल हो जाते हैं

धीरज के क़िस्से इनके इतिहास बताता है
पर मामूली बातों पर दंगल हो जाते हैं

क्या जाने कैसा जुनून है सिर चढ़ जाता है
ये मन के वृन्दावन हैं जंगल हो जाते हैं

चलती है नफ़रत की आँधी ख़ून टपकता है
दृश्य प्रेम के करुणा के ओझल हो जाते हैं