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नरेन्द्र शर्मा

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नरेन्द्र शर्मा की रचनाएँ

नरेन्द्र शर्मा
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जन्म 1913
निधन
उपनाम
जन्म स्थान जहाँगीरपुर, जिला खुर्जा, उत्तर प्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ
शूल -फूल (१९३४), कर्ण फूल (१९३६), प्रभात फेरी (१९३८), प्रवासी के गीत (१९३९), कामिनी (१९४३), मिट्टी और फूल (१९४३), पलाशवन (१९४३), हँस माला (१९४६), सर्तचँदन (१९४९), अग्निशस्य (१९५०), कदलीवन (१९५३), द्रौपदी (१९६०), प्यासा निर्झर (१९६४), उत्तर जय (१९६५), बहुत रात गये (१९६७), सुवर्णा (१९७१), सुवीरा (१९७३), प्रमुख पत्रिकाएँ सरस्वती १९३२ व चाँद १९३३ मेँ प्राँरभिक रचनाएँ व स्फुट कविताएँ व समीक्षा इत्यादी छपती रही
विविध
पंडित नरेन्द शर्मा ने हिन्दी फ़िल्मों के लिये बहुत से गीत लिखे। उनके 17 कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह, एक जीवनी और अनेक रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।
जीवन परिचय
नरेन्द्र शर्मा / परिचय
कविता कोश पता
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मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

मैँने भी मधु के गीत रचे, मेरे मन की मधुशाला मेँ

यदि होँ मेरे कुछ गीत बचे, तो उन गीतोँ के कारण ही,

कुछ और निभा ले प्रीत ~ रीत !

मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

मधु कहाँ , यहाँ गँगा - जल है !

प्रभु के चरणोँ मे रखने को ,

जीवन का पका हुआ फल है !

मन हार चुका मधुसदन को,

मैँ भूल चुका मधु भरे गीत !

मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

वह गुपचुप प्रेम भरीँ बातेँ, (२)

यह मुरझाया मन भूल चुका

वन कुँजोँ की गुँजित रातेँ (२)

मधु कलषोँ के छलकाने की

हो गयी , मधुर बेला व्यतीत !

मधु के दिन मेरे गये बीत ! ( २ )

रचना : [ स्व पँ. नरेन्द्र शर्मा ]

मेरे गीत बडे हरियाले,

मैने अपने गीत, सघन वन अन्तराल से खोज निकाले मैँने इन्हे जलधि मे खोजा, जहाँ द्रवित होता फिरोज़ा मन का मधु वितरित करने को, गीत बने मरकत के प्याले ! कनक - वेनु, नभ नील रागिनी, बनी रही वँशी सुहागिनी -सात रँध्र की सीढी पर चढ, गीत बने हारिल मतवाले !

देवदारु की हरित शिखर पर अन्तिम नीड बनायेँगे स्वर, शुभ्र हिमालय की छाया मेँ, लय हो जायेँगे, लय वाले !

[ स्व. पँ. नरेन्द्र शर्मा ] ऐसे हैं सुख सपन हमारे बन बन कर मिट जाते जैसे बालू के घर नदी किनारे ऐसे हैं सुख सपन हमारे.... लहरें आतीं, बह बह जातीं रेखाए बस रह रह जातीं जाते पल को कौन पुकारे ऐसे हैं सुख सपन हमारे.... ऐसी इन सपनों की माया जल पर जैसे चाँद की छाया चाँद किसी के हाथ न आया चाहे जितना हाथ पसारे ऐसे हैं सुख सपन हमारे....

ज्योति पर्व : ज्योति वंदना


जीवन की अँधियारी रात हो उजारी ! धरती पर धरो चरण

तिमिर-तम हारी 

परम व्योमचारी! चरण धरो, दीपंकर,

जाए कट तिमिर-पाश!

दिशि-दिशि में चरण धूलि

छाए बन कर-प्रकाश!

आओ, नक्षत्र-पुरुष, गगन-वन-विहारी परम व्योमचारी! आओ तुम, दीपों को निरावरण करे निशा! चरणों में स्वर्ण-हास बिखरा दे दिशा-दिशा! पा कर आलोक,

मृत्यु-लोक हो सुखारी 

नयन हों पुजारी! २०:३३, ५ मई २००८ (UTC)२०:३३, ५ मई २००८ (UTC)२०:३३, ५ मई २००८ (UTC)२०:३३, ५ मई २००८ (UTC)~

सुख सुहाग की दीव्य ~ ज्योति से,

घर आँगन मुस्काये,
ज्योति चरण धर कर दीवाली, 

घर आँगन नित आये"

रचना : पँ.नरेद्र शर्मा 

लौ लगाती गीत गाती, दीप हूँ मैँ, प्रीत बाती नयनोँ की कामना, प्राणोँ की भावना. पूजा की ज्योति बन कर, चरणोँ मेँ मुस्कुराती आशा की पाँखुरी, श्वासोँ की बाँसुरी , थाली ह्र्दय की ले, नित आरती सजाती कुमकुम प्रसाद है, प्रभू धन्यवाद है हर घर में हर सुहागन, मँगल रहे मनाती २०:३९, ५ मई २००८ (UTC)२०:३९, ५ मई २००८ (UTC)२०:३९, ५ मई २००८ (UTC)२०:३९, ५ मई २००८ (UTC)~ तुम्हेँ याद है क्या उस दिन की नए कोट के बटन होल मेँ, हँसकर प्रिये, लगा दी थी जब वह गुलाब की लाल कली ?

फिर कुछ शरमा कर, साहस कर, बोली थीँ तुम, " इसको योँ ही खेल समझ कर फेँक न देना, है यह प्रेम -भेँट पहली ! "

कुसुम कली वह कब की सूखी, फटा ट्वीड का नया कोट भी, किन्तु बसी है सुरभि ह्रदय मेँ, जो उस कलिका से निकली !

( फरवरी १९३७, रचना प्रवासी के गीत काव्य सँग्रह से : नरेन्द्र शर्मा )