भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रँग गई पग-पग धन्य धरा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:17, 18 नवम्बर 2010 का अवतरण ("रँग गई पग-पग धन्य धरा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
रँग गई पग-पग धन्य धरा,---
हुई जग जगमग मनोहरा ।
वर्ण गन्ध धर, मधु मरन्द भर,
तरु-उर की अरुणिमा तरुणतर
खुली रूप - कलियों में पर भर
स्तर स्तर सुपरिसरा ।
गूँज उठा पिक-पावन पंचम
खग-कुल-कलरव मृदुल मनोरम,
सुख के भय काँपती प्रणय-क्लम
वन श्री चारुतरा ।