भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पाणी मऽ की पगडण्डी हो माता ब्याळु मऽ की वाट जी / निमाड़ी
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
पाणी मऽ की पगडण्डी हो, माता ब्याळु मऽ की वाट जी।
रनुबाई पीयर संचरिया जी, माता सई नऽ ली संगात जी।
एक सव तो माता वांजुली, ओ, दुई सव बाळा की माय जी,
वाळा की माय थारी सेवा कर हो, वाझ नऽ संझो द्वार जी।
हेडूँ कटारी लहलहे हो, म्हारो ए जीव तजूँ थारा द्वार जी,
उभी रहो, उभी रहो, वांजुली हो,
माता मखऽ ढूँडण दऽ भंडार जी।
सगळो भंडार हऊं ढूँडी आई,
थारा करमऽ नी तानो बाल जी।