भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वक़्त के साथ चला जाय, यही बेह्तर है / के. पी. अनमोल
Kavita Kosh से
वक़्त के साथ चला जाय, यही बेह्तर है
वक़्त के साथ ढला जाय, यही बेह्तर है
उम्र के अपने तकाज़े हैं ज़रा ग़ौर करें
इसको बिलकुल न छला जाय, यही बेह्तर है
अश्क़ का झरना लगातार बहे और तेरी
याद की चिट्ठी जला जाय, यही बेह्तर है
पेड़ बनने का इरादा है मेरा अगली दफ़ा
जिस्म मिट्टी में गला जाय, यही बेह्तर है
बेसबब अपनी ही फ़ितरत को बदलने की बजाय
चंद आँखों में खला जाय, यही बेह्तर है
खोज बेह्तर की लिए जा रही है साथ उसे
इसमें सबका है भला, जाय, यही बेह्तर है
इश्क़ अनमोल तेरा है कोई मरहम कि इसे
रूह पर मेरी मला जाय, यही बेह्तर है