भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनों की जब शह पायेगा / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:07, 25 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरि फ़ैज़ाबादी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अपनों की जब शह पायेगा
गै़र तभी कुछ कह पायेगा
आँखों में जो नहीं समाया
दिल में कैसे रह पायेगा
महल ख़्वाब का चाल समय की
आख़िर कब तक सह पायेगा
नाव रोक दे तू लहरों के
साथ कहाँ तक बह पायेगा
जगहें भरना अलग बात है
किसकी कौन जगह पायेगा