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अब क्या छुपा सकेंगी उरयानिआँ हविस की / सीमाब अकबराबादी
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:29, 20 फ़रवरी 2012 का अवतरण
अब क्या छुपा सकेगी उरयानियाँ-हविस की?
काँधों से पिंडलियों तक लटकी हुई क़बायें॥
वक़्ते-विदा-ए-गुलशन नज़दीक आ रहा है।
अब आशियाँ उजाड़ें या आशियाँ बनायें॥