भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आश्विन / अंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:10, 28 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 (1)
आश्विन आया है अभी-अभी
थकान उतारने के लिए नहाया
नदी में
सज-धजकर तैयार हुआ
पगड़ी बाँधी और उसमें खोंस ली
कास की सफेद कलगी
उसकी देह को छूकर
आ रही है ठंडी हवा

 (2)

आश्विन की सुबह
रोज नहाती है
आकाश की साँवली झील में
पहन लेती है केसरिया साड़ी
और झाँकने लगती है
पूरब की खिड़की से
उसके भींगे बालों से टपकी बूँदे
अटकी रह जाती हैं
घास की फुनगियों में

 (3)

देखोगे आश्विन को हँसते हुए?
तो देखना
हर नीली सुबह
वह न जाने किससे बातें करता है
और खूब हँसता है
हरसिंगार के पेड़ के नीचे
सवेरे उसकी हँसी बिखरी रहती है