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किसी के पास अब दिल है नहीं क्या / गोविन्द गुलशन

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किसी के पास अब दिल है नहीं क्या
मुहब्बत की सदाएँ मर गईं क्या

तलाशी ले रहे हो रास्तों की
तुम्हारा खो गया है कुछ कहीं क्या

ये दिल की धड़कनें कुछ कह रही हैं
सुनाई आपको देता नहीं क्या

मुसलसल ज़लज़ले आने लगे हैं
निगल जाएगी सब कुछ ही ज़मीं क्या

न जाने कब से बैठी हैं ये खुशियाँ
तुम्हें कुछ भी नज़र आता नहीं क्या