भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ भी बदला नहीं फलाने / कैलाश गौतम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:12, 14 जून 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश गौतम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ भी बदला
नहीं फलाने
सब जैसा का तैसा है

सब कुछ पूछो
यह मत पूछो
आम आदमी कैसा है

क्या सचिवालय
क्या न्यायालय
सबका वही रवैय्या है

बाबू बड़ा ना
भैय्या प्यारे
सबसे बड़ा रुपैय्या है

पब्लिक जैसे
हरी फ़सल है
शासन भूखा भैंसा है

मंत्री के
पी.ए. का नक्शा
मंत्री से भी हाई है

बिना कमीशन
काम न होता
उसकी यही कमाई है

रुक जाता है
कहकर फ़ौरन
देखो भाई, ऐसा है

मनमाफ़िक
सुविधाएँ पाते
हैं अपराधी जेलों में

काग़ज़ पर
जेलों में रहते
खेल दिखाते मेलों में

जैसे रोज़
चढ़ावा चढ़ता
इन पर चढ़ता पैसा है