भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोहबर वइठल ओहे धनि सुन्नर, काहे धनि बदन मलीन / मगही

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:03, 17 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मगही |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatMagahiR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कोहबर वइठल ओहे धनि सुन्नर, काहे धनि बदन मलीन।
तनि एक<ref>थोड़ा सा</ref> अहे धनि मुहमा पखारह<ref>पखारो, धोओ</ref> खिलि जयतो बदन तोहार॥1॥
मलिया के बघिया<ref>बाग में</ref> में फुलवा फुलायल, फूल फूलल कचनार।
ओहे फूल लागि<ref>फूल के लिए</ref> हइ जियरा बेयाकुल, मोर बदन कुम्हलाय॥2॥
मलिया के बघिया फेड़<ref>पेड़</ref> अमरितंवा<ref>अमृत का</ref> फूल फरि भेल भुइआँ नेब<ref>जमीन पर झुक गया</ref>।
तेहि अमरित फूल लागि जियरा बेयाकुल, मोर बदन कुम्हलाए॥3॥
कथिए पिसायब, कथिए उठायब, कथिए घरब हम सहेज।
लोढ़े पिसाएब, हँथवे उठायब, कटोरवे रखब सहेज॥4॥
सेहि पीइ<ref>उसे पीकर</ref> अहे धनि, सुतह हमर सेजिय, खिलि जयतो बदन तोहार।
लोढ़े पिसायल, हँथवे उठायल, कटोरवे रखल सहेज॥5॥
सेहि पीइ एहो धनि सुतलन सेजरिया, खिलि गेलन बदन अपान<ref>अपना</ref>।
मलियन<ref>मलिये में तेल रखने का छोटा कटोरे जैसा पात्र-विशेष</ref> तेल कटोरवन<ref>कटोरे में</ref> उबटन, तेल लगावे आठो अँग॥6॥
तेल लगवइत<ref>लगाते समय</ref> एक बात पूछल, कह परभु जलम के बात।
हमरो जलम भेल, नगर बधावा भेल, भे गेलइ<ref>हो गया</ref> चहुँ दिस इँजोर॥7॥
बड़ जेठ लोग सभ आसीस देलन, राजा भगीरथ होय।
तुहूँ कहहु धनि अपन जलमिया, कहली हम सब हे अपान॥8॥
जाहि दिन अजी परभु, हमरो जलम भेल, बाबा सूतल चदरी तान।
झोंकि दिहल चेरिया मिरचा<ref>मिर्च</ref> के बुकनी<ref>चूर्ण</ref> सउरी<ref>सौरीघर</ref> में पड़ल हरहोर॥9॥
बाबा जे जड़लन<ref>जड़ दिये, बंद कर दिये</ref> बजड़ केमड़िया<ref>वज्र की किवाड़ी</ref> मामा<ref>दादी</ref> उठल झउराय<ref>झल्ला उठीं</ref>।
गड़ल गडु़अवा<ref>द्रव्य रखकर धरती में गाड़ा गया पात्र</ref> हमर उखड़ावल<ref>उखड़वा दिया</ref> होइ गेलन जीउ जंजाल॥10॥

शब्दार्थ
<references/>