भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गनीमत है / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:35, 20 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गनीमत है
हमारे घरों तक
धुआं पहुंचा है,
आग नहीं।

गनीमत है
हमें खबरे आतंकित कर रही हैं
युद्ध नहीं।

गनीमत है
अभी करुणा
बची हुई है
हमारे मनों में।

गनीमत है
हमें वक्त दिया जा रहा है
सोचने का।

गनीमत है
हम कल के बारे में
कुछ नहीं जानते।