भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर में वो जब भी आया होगा / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:23, 26 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी }} घर में वो जब भी आया होगा<br> खुशबू से घर म...)
घर में वो जब भी आया होगा
खुशबू से घर महका होगा।
उसने जुल्फ़ को झटका होगा
प्यार का सावन बरसा होगा।
साँसों में है उसकी खुश्बू
इस रह से वो गुज़रा होगा।
कलियाँ सारी मुस्काती हैं
उनपे यौवन आया होगा।
झन झन झन झनकार करे दिल
उसने का साज़ बजाया होगा।
मुझको सँवरता देखके दर्पण
मन ही मन शरमाया होगा।
दिल के दर्पण में ऐ 'देवी'
अक्स उसीका आया होगा।