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घुमवन बइठलन कउन मइया सिवसंकर हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

घुमवन बइठलन कउन<ref>कौन</ref> मइया सिवसंकर हे।
बहमाँहि<ref>कहाँ</ref> भेल अनंद, कहहु सिवसंकर हे॥1॥
चुमवन बइठलन कोसिला रानी, सुनु सिवसंकर हे।
अजोधाहिं<ref>अयोध्या</ref> भेगेलइ<ref>हो गया</ref> अनंद, कहहु सिवसंकर हे॥2॥
मोतियनि अँजुरी<ref>अंजलि</ref> भरावल, सुनहु सिवसंकर हे।
जवरे<ref>साथ में</ref> जनइया<ref>जनक</ref> रीखी<ref>ऋषि</ref> बेटी, सुनहु सिवसंकर हे॥3॥
भँटवा हे गरजइ दरोजे<ref>दरवाजे पर</ref> बइठी, सुनहु सिवसंकर हे।
भँटीनियाँ<ref>भाट की पत्नी</ref> मँड़ोवा<ref>धरकर, पकड़कर</ref> धइले<ref>मंडप</ref> ठाढ़, सुनहु सिवसंकर हे॥4॥
नउबा<ref>नाई</ref> जे हँस हइ निछावर लागी, सुनहु सिवसंकर हे।
नउनियाँ जे रूसलइ<ref>रूठ गई है</ref> पटोर ला<ref>रेशमी वस्त्र के लिए</ref> सुनहु सिवसंकर हे॥5॥
देबो गे नउनियाँ से सोने रूपे पीत पटम्मर हे।
देबो हम अजोधा के राज, सुनहु सिवसंकर हे॥6॥

शब्दार्थ
<references/>