भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जानकी -मंगल / तुलसीदास/ पृष्ठ 5

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:47, 17 मई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

।।श्रीहरि।।
    
( जानकी -मंगल पृष्ठ 5)

विश्वामित्रजी की राम-भिक्षा-1
 
( छंद 25 से 32 तक)
 
नाथ मोहि बालकन्ह सहित पुर परिजन
राखनिहार तुम्हार अनुग्रह धर बन।25।

दीन बचन बहु भाँति भूप मुनि सन कहे।
सौंपि राम अरू लखन पाय पंकज गहे।26।

 पाइ मातु पितु आयसु गुरू पायन्ह परे।
 कटि निषंग पट पीत करनि सर धनु धरे।27।

 पुरबासी नृप् रानिन्ह संग दिये मन।
 बेगि फिरेउ करि काजु कुसल रघुनंदन।28।

 ईस मनाइ असीसहिं जय जसु पावहु ।
 न्हात खसै जनि बार गहरू जनि लावहु। 29।

 चलत सकल पुर लोग बियोग बिकल भये।
 सानुज भरत सप्रेम राम पायन्ह नए।30।

होहिं सगुन सुभ मंगल जनु कहि दीन्हेउ।
 राम लखन मुनि साथ गवन तब कीन्हेउ।31।

स्यामल गौर किसोर मनोहरता निधि।
सुषमा सकल सकेलि मनहुँ बिरचे बिधि।32।
 
(छंद4)

 बिरचे बिरंचि बनाइ बाँची रूचिरता रंचौ नहीं ।
 दस चारि भुवन निहारि देखि बिचारि नहिं उपमा कहीं।।

 रिषि संग सोहत जात मग छबि बसत सो तुलसी हिएँ।
कियो गवन जनु दिननाथ उत्तर संग मधु माधव लिएँ।4।

 
(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 5)

अगला भाग >>