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तमाम उम्र चिराग़ों के आस-पास रहे / राम गोपाल भारतीय
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तमाम उम्र चिराग़ों के आस- पास रहे
हमारे दौर के जुगनू मगर उदास रहे
उधर फ़क़ीरों की महफ़िल में मय बरसती रही
इधर अमीरों के खाली पड़े गिलास रहे
मुझे वो हौंसला देना की शेर पढता रहूँ
तुम्हारे होंठ पे जब तक ग़ज़ल की प्यास रहे
कठिन है दौर ज़रूरी है आदमी बनना
हमारा कोई धरम हो कोई लिबास रहे