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तुमने कहा था-4 / प्रेमचन्द गांधी

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हमारा प्रेम एक दुख है
जैसे पृथ्वी पर दूसरे दुख हैं
वे भी हमारे ही दुख हैं
हमने दुख गिने नहीं, जो मिले भोग लिये
क्योंकि प्रेम सबसे बड़ा दुख है