भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरिया में मत आग लगाओ नई नीति से / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:47, 18 मई 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दरिया में मत आग लगाओ नई नीति से
कोई फिर न सुनामी लाओ नई नीति से

कहते हो तुम निजीकरण जनहित में है
मड़ईलाल को महल दिलाओ नई नीति से

राजमहल में रहने वालो डरो खुदा से
इतना मत आतंक मचाओ नई नीति से

चोर, लुटेरे, ठगीकरण से जेबें भरते
ओ जल्लादो, बाज भी आओ नई नीति से

फिर भी लोग कहेंगे बगुला भक्त ही तुम्हें
कितने रूप बदलकर आओ नई नीति सेॽ

 सत्ता आज तुम्हारी है, कल और किसी की
जनपथ में कांटे न बिछाओ नई नीति से

कितना ताक़तवर किसान है समझ गये हो?
अब तो अपना पिंड छुड़ाओ नई नीति से