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दुनिया / विनोद विट्ठल
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स्वस्थ दिनों में ही बोते हैं बीमारियों के बीज जैसे
ख़ुशहाल दिनों में ही बनाते हैं बर्बादी का रास्ता
अलग होने की शुरुआत करते हैं गर्मजोशी से साथ रहते हुए
मुद्रा को महीन और बाज़ार को बड़ा
खु़द को छोटा और दुनिया को कड़ा
हम ही करते हैं जैसे
जलाते हैं मोमबत्ती उम्र की बेपरवाही से
हम नहीं सुन रहे हैं किसी का कहना,
दुनिया भी एक मोमबत्ती है ।