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पिकनिक ( बाल-कविता) / रवीन्द्र दास

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वन के राजा शेरशाह ने पहले सबको खूब हंसाया

तरह तरह का भांति-भांति का मजेदार चुटकुला सुनाया

सबको टॉफी, सबको कुल्फी, सबको खट्टा चाट खिलाया

सबने काफी मज़े किये और सबको काफी सैर कराया

इसी तरह से शेरशाह ने पिकनिक देकर उन्हें लुभाया

वे थे सीधे सच्चे भोले सो मन में संदेह न आया

लेकिन शेरशाह तो भाई! खानदान से राजा ही था

लोकतंत्र का मुश्किल रास्ता उसके जी को कभी न भाता

वापस जब सब वन में आये शेरशाह ने उन्हें बताया

तुम सबने जो मज़े किये उसके बदले क्या दोगे तुम?

वन के वासी भारत वासी लगे सोचने बैठे गुमसुम

शेरशाह फिर से मुस्काया बोला मुझको दो मतदान

वरना पिकनिक का खर्चा दो बोलो देना है आसान

सबकी ख़ुशी हुई छूमंतर सबके होश ठिकाने आए

सच कहते हैं ज्ञानी ध्यानी रिश्वत का दावत न खांए

मुफ्त खोर तुम बन जाओगे सभी करेंगे ऐसी तैसी

हालत सबकी हो जाएगी वन के उन पशुओं के जैसी।