भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संतों के चरण पड़े / कैलाश गौतम

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:31, 18 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश गौतम |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> संतो...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संतों के चरण पड़े
रेत में कछार खो गये |

पौ फटते ही ग्रहण लगा
और उग्रह होते शाम हो गयी
जब से मरा भगीरथ गंगा
घड़ियालों के नाम हो गयी
आंगन में अजगर लेटे हैं
पथ के दावेदार खो गये |

हल्दी रंगे सगुन के चावल
राख हो गये हवन कुंड में
उजले धुले शहर गीतों के
झुलस रहे हैं धुआँ धुन्ध में
नये पराशर हुए अवतरित
कुहरे में भिनसार खो गये |

आश्वासन कोरे थे कितने
कितने वादे झूठे थे
ऐश महल में वही हैं कल जो
कोपभवन में रूठे थे
आज उन्हीं के गले ढोल है
कल जिनके त्यौहार खो गये |