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सृजन का अँधेरा / अंजना वर्मा

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एक शिशु को जन्म लेने के बाद
मिलती है यह रोशनी की दुनिया
तब वह जीना शुरू करता है
सूरज के उजाले में
वही आधार है जीवन का
हमारी साँसों का मालिक वही
रात-दिन का निर्माता
पूरी सृष्टि को गढ़ने वाला
लेकिन सूरज की रोशन दुनिया से
अलग है कोख की अँधेरी कोठरी
माँ गढ़ती है अपने शिशु को
कला-कक्ष के अंधकार में
यह अँधेरा सर्जन का अँधेरा है
जो बड़ा है रोशनी से
जिसे यह नहीं मिलता
उसे सूरज भी
ज़िन्दगी का उजाला दे नहीं सकता।