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स्त्री का अपने अंदाज़ में आना / शलभ श्रीराम सिंह

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सुबह की ताज़ा हवा की तरह आती है एक स्त्री
आती है एक स्त्री आँधी की तरह
उमस और घुटन की तरह आती है एक स्त्री।

पत्ती की थरथराहट की तरह आती है एक स्त्री
एक स्त्री धूप की गर्माहट की तरह
चाँदनी की चुप्पी की तरह आती है एक स्त्री।

परछाई की तरह आती है एक स्त्री उजालों में केवल
एक स्त्री आती है हँसी की तरह अच्छे दिनों में
बुरे दिनों में बैचेनी की तरह आती है एक स्त्री।

तुम्हारी तरह नहीं आती है कोइ स्त्री
अपने अंदाज़ में ठीक-ठीक
अपने अंदाज़ में स्त्री का आना
ईश्वरी हो जाना है।

ईश्वरी पूजित हो सकती है केवल
प्यार नहीं कर सकती है किसी को वह
प्यार करने वाली ईश्वरी की हत्या कर देती है दुनिया।


रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा