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हर दिल इनाम के काबिल नहीं होता / तारा सिंह
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हर दिल इनाम के काबिल नहीं होता
मौज की किस्मत में साहिल नहीं होता
हर दर्द एक दूसरे से सदा ज़ुदा है होता
कोई दर्द किसी दर्द में शामिल नहीं होता
जवानी ख्वाब में दाखिल तो होती, मगर
निगाहें-शौक नकाब में दाखिल नहीं होता
पुकारने से अगर भगवान मिलता, तो
बुतों3 से मिलना,इतना मुश्किल नहीं होता
तुम काबे से बुतखाने में,मैं बुतखाने से
काबे में जाता,किसी को सोजे-दिल न होता