भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हृदय से पुकारूँगा / विकास पाण्डेय

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:31, 18 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विकास पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एकबार फिर तुम्हें
हृदय से पुकारूँगा।
अहंकार की छत से,
विनम्रता कि सीढियों से
स्वयं को उतारूँगा।

जीवन के पन्नों पर,
वर्तनियों की त्रुटियाँ
सजग हो सुधारूँगा।
आशाओं के आकाश तले
अनंत सम्भावनाओं की
बाहें पसारूँगा।

स्वागत करूँगा मैं,
पश्चाताप-अश्रुओं से
तुम्हारे पग पखारूँगा।
पूर्णमासी की निशा में,
चंद्रमुख का स्मित मधुर,
अपलक निहारूँगा।

एकबार फिर तुम्हें
हृदय से पुकारूँगा।