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'पेड़' कविता-क्रम से / मरीना स्विताएवा

प्राणान्तक विजय की ओर
जा रहा है एक आदमी।

त्रासदियों के संकेत दे रहे हैं पेड़।
नाच रहे हैं यहूदी
बलि चढ़ाने के इस अवसर पर !

रहस्यपूर्ण है पेड़ों की फड़फड़ाहट।
फूट, संकर्णता, अहंकार की शताब्दी के विरुद्ध
षड़यन्त्र है यह बहुत बड़ा।

फट चुके हैं आवरण सब-
पेड़ों के पास ये संकेत हैं मृत्यु के...

चला जा रहा है एक आदमी
आकाश है जैसे प्रवेश-द्वार।

पेड़ दे रहे हैं संकेत विजय के।

रचनाकाल : 07 मई 1923

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह