अंग दर्पण / भाग 11 / रसलीन
बाजूबन्द-वर्णन
सुबरन बाजूबंदजुत बांह लसत अहिं भाय।
मनु दामिनि पै चाइके नखत बसे हैं आय॥116॥
यों बजुबंद की छबि लसी छबियन फूंदन घोर।
मानों झूमत हैं छके अमी कमल तर भोर॥117॥
भुजटार-वर्णन
बसुधा में भुज टार की उपमा बुधान चेत।
बाल सुधाकर सुधाधर सुधा लहर सो लेत॥118॥
चूरी-वर्णन
रंग बिरंग चूरीनहीं लखि रवि कंकन भेख।
हरि सन बिनय बली मनों कर परसन परवेख॥119॥
गजरा-वर्णन
तुव गजरन के फुंदना मनिगन की दुति पाय।
चित चोरत है जगत को अनगन दीप जराय॥120॥
आरसी छला-वर्णन
जड़ित आरसी कीर्तिका सोहत अंगुठा साथ।
छले नखत जे अवर तें छले बने हैं हाथ॥121॥
आरसी मुखछांह-वर्णन
मुकुत जरी कर आरसी तामें मुख की छांह।
यो लागत मानो ससी उड़गन मंडल मांह॥122॥
गात-वर्णन
सकुचत चंपा गात लखि संपा नहिं ठहराय।
याको तन कंपा भयों झंपा गगन बनाय॥123॥
तरुनि बरन सर करन को जग में कवन उदोत।
सुबरन जाके अंग ढिग राखत कुबरन होत॥124॥
देह दीपति छांब गेह की किहिं बिधि बरनी जाय।
जा लखि चपला गगन ते छिति फरकत निज आय॥125॥