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अगर कोई ख़ालिश-ए-जाविदाँ सलामत है / 'महताब' हैदर नक़वी
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अगर कोई ख़ालिश-ए-जाविदाँ सलामत है
तो फि जहाँ में ये तर्ज-ए-फुगाँ सलामत है
अभी तो बिछड़े हुए लोग याद आयेंगे
अभी तो दर्द-ए-दिल-ए-रायगां सलामत है
अगरचे इसके न होने से कुछ नहीं होता
हमारे सर पे अगर आसमाँ सलामत है
हमारे सीने का ये ज़ख़्म भर गया ही तो क्या
अदू के तीर अदू की कमाँ सलामत है
जहाँ में रंज-ए-सफ़र हम भी खींचते हैं
जो गुम हुआ है वही करवाँ सलामत है