अगर लिखना किसी को हो लिखो मनुहार की भाषा / रंजना वर्मा
अगर लिखना किसी को हो लिखो मनुहार की भाषा।
समझ लेते सभी प्राणी जगत में प्यार की भाषा॥
हृदय में हो भरा अपनत्व तो सब दृष्टि कह देती
चिकित्सक देख कर ही जान ले बीमार की भाषा॥
बहाना खून है प्यारा जिन्हें उन से कहो जा कर
बहा लो रंग होली में पढो त्यौहार की भाषा॥
दिखा कर अस्त्र सीमा पर सदा ललकारते रहते
उठो उठकर सिखा दो अब उन्हें संहार की भाषा॥
अकारण ही हमारी शांति को जो भंग करते हैं
उन्ही के वास्ते लिक्खी गयी है हार की भाषा॥
पहन कर फूल सरसों के बसन्ती हो गयी धरती
विविधवर्णी सुमन खिल कर लिखें सिंगार की भाषा॥
चलो छोड़ो न खिंचने दो कोई दीवार आँगन में
मुहब्बत से गले मिल कर पढो परिवार की भाषा॥
हृदय दे कर हृदय प्रतिदान में पाना ज़रूरी है
इसी पर सृष्टि निर्भर है यही अभिसार की भाषा॥
मिटेगा द्वंद्व सारा भूमि होगी स्वर्ग-सी अनुपम
बनेगी प्यार की भाषा सकल संसार की भाषा॥