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अनपढ़ राखी कोन्या बाकी तनै मेरी आत्मा मोसी मां / सतबीर पाई

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अनपढ़ राखी कोन्या बाकी तनै मेरी आत्मा मोसी मां
आज वक्त पै आण कै नै गाळ तेरे कोसी मां
      
होई नहीं थी स्याणी याणी थी जब मैं दुत्कार दई
करी पढ़ाई भाई नै मैं चौड़े काल्लर मार दई
मनै कुछ भी मालूम पाट्टी ना मौत के घाट तार दई
जै न्यू ए दुभांत राखणी थी तनै क्यूं ना जी तै मार दई
छोड़ तनै मंझधार दई इब किसनै ठहराऊं दोषी मां
   
दोधारी तलवार मेरी गर्दन पै लटक्या करती
सब कुणबे की नजरां मैं सबके खटक्या करती
दांत भींच मेरे बाळ खींच इस तरियां झटक्या करती
मैं खामोश रहूं थी जोश मैं तू ठा ठा पटक्या करती
तेरी इज्जत भटक्या करती या बात बड़ी अफसोसी मां
 
मैं घर का करती काम भाई पढऩे जाता था
मैं लाती हाथ किताबां कै मनै छोह मैं धमकाता था
तू सारी न्यूए सुणे जा थी मेरा कोई भी ना खाता था
उसे ज्यादा मिलती चीज अगर मेरा बाप शहर तै ल्याता था
मेरी घीटी पकड़ दबाता था, छुड़वाते अगड़ पड़ौसी मां
 
चल गोबर कूड़ा करले मरले मेरे सिर पै टोकरी धरती री
ज्यादा वजन मेरे सिर पै मैं ना बोलूं थी डरती री
मनै कंचनी डाण बताकै गाळ दिया न्यू करती री
तेरी कमी मनै ले डूबी मैं ना जीती ना मरती री
पाई वाले सतबीर पढ़ाई ईब दूर करै बेहोशी मां