भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अप्पन राज बचाइ ले / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
चलऽ भइया
मजदुर किसनमां
अप्पन राज बनाबइ ले
जोर जुलुम जे मचा रहल हे
ओकरा मिल मेटावइ ले
कुरसी दर कुरसी बीतल
जिनगी ई कमि अउटी में
हमर पसेना से रांगल
धरती सभे भंजउती में
शोषण दोहन के रसरी
सब मिलजुल चलऽ तोड़ावइ ले
धरती के सिंगार हमी ही
हमरे पर तऽ टिक्कल हइ
हमरे मेहनत के मोती पर
दुनिया गुलफुल मुसकल हइ
हक पर गाज गिरइलक जे जे
चल ओकरा दफनावइ ले
भेद भाव के तजके भइया
होवऽ ने तइयार सभे
दुख दरद सुनतो न´ अइसे
बिक जा हो सरकार सभे
सत्ता मजदुर हाथ में अप्पन
पड़तो बढ़के लेबइ ले।