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अफ़सोस न दुनिया का, शिक्वा न ज़िन्दगी से / मनु भारद्वाज

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अफ़सोस न दुनिया का, शिक्वा न ज़िन्दगी से
छोटी सी उम्र पायी, काटो हँसी ख़ुशी से

करता है वो ये दावा दुश्मन हो जैसे मेरा
वो राज़ अपने दिल के कहता भी है मुझी से

शे'रों में दर्द मेरे, तेरा ही है नुमायाँ
ग़ज़लों में सारी रोनक आती भी है तुझी से

इस दिल को लाख रोका ज़ाहिर करे न कुछ भी
कमबख्त कह भी आया हर हाल आप ही से

अश्कों में ग़र्क़ ग़ज़लों का राज़ क्या बताएं
रोते रहे लिपटकर हम अपनी शायरी से

चेहरा किसी हँसी का कैसे 'मनु' भुला दें
छुपता नहीं है दिल से, जाता नहीं है जी से