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अभी रूसवाइयों का इक बड़ा बाजार आएगा / 'महताब' हैदर नक़वी

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अभी रूसवाइयों का इक बड़ा बाजार आएगा
फिर इस के बाद ही वो कूचा-ए-दिल-दार आएगा

वतन की एक तस्वीर ख़याली सब बनाते हैं
ख़बर लेकिन नहीं क्या इस में कू-ए-यार आएगा

गुल-ए-शाख़-ए-मोहब्बत पर लहू का रंग खिलता है
के अब रंग-ए-हिना जिक्र-ए-लब-ओ-रूख़्सार आएगा

हमारे वास्ते भी साअत-ए-हम-वार ठहरेगी
के राह-ए-शौक़ में जिस दम वो ना-हम-वार आएगा

अभी आब-ओ-हवा-ए-जिस्म के असरार खुलते हैं
अभी वो तोड़ने इस जिस्म की दीवार आएगा

करो अहल-ए-जुनूँ कुछ तो करो सामान-ए-दिल-दारी
के शहर-ए-इश्क़ में शोख़ पहली बार आएगा