भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभी रूसवाइयों का इक बड़ा बाजार आएगा / 'महताब' हैदर नक़वी
Kavita Kosh से
अभी रूसवाइयों का इक बड़ा बाजार आएगा
फिर इस के बाद ही वो कूचा-ए-दिल-दार आएगा
वतन की एक तस्वीर ख़याली सब बनाते हैं
ख़बर लेकिन नहीं क्या इस में कू-ए-यार आएगा
गुल-ए-शाख़-ए-मोहब्बत पर लहू का रंग खिलता है
के अब रंग-ए-हिना जिक्र-ए-लब-ओ-रूख़्सार आएगा
हमारे वास्ते भी साअत-ए-हम-वार ठहरेगी
के राह-ए-शौक़ में जिस दम वो ना-हम-वार आएगा
अभी आब-ओ-हवा-ए-जिस्म के असरार खुलते हैं
अभी वो तोड़ने इस जिस्म की दीवार आएगा
करो अहल-ए-जुनूँ कुछ तो करो सामान-ए-दिल-दारी
के शहर-ए-इश्क़ में शोख़ पहली बार आएगा