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आँखों आ़खो में मुहब्बत की नुमाईश की है / कबीर शुक्ला
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आँखों आँखों में मुहब्बत की नुमाइश की है।
आज मैंने अपने दिल की आजमाइश की है।
शम्मा-ए-उल्फ़त जलाकर निगाहे-मुंतज़िर ने,
सफ़रे-मुहब्बत में चलने की फर्माइश की है।
कहीं नज़र ना लगे मेरे चाँद से महबूब को,
अक़ीदत से दरीचों पर पैरहन-आराइश की है।
परवरदिगार उसे हर अज़ाब से महफ़ूज़ रखे,
ख़ानमाँ-ख़राब नें अमीरों से मुबाहिश की है।
ख़ुदा ख़ैर करे इस नादान को हिम्मत बख़्शे,
एक परिंदे ने आफ़ताब की ख़्वाहिश की है।