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आँसुओं की धार को बंदी बना लेते हैं लोग / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
आँसुओं की धार को बन्दी बना लेते हैं लोग
ये करिश्मा है कि फिर भी मुस्कुरा लेते हैं लोग !
स्वप्न को साकार करने की कला सीखे बिना
आने वाले कल को सपनों में सजा लेते हैं लोग
एक भी अन्याय का करते नहीं तन कर विरोध
खुद को कालीनों की शैली में बिछा लेते हैं लोग
चाल चलने से अगर हो ‘मात’ की संभावना
राजनैतिक दुश्मनों से भी निभा लेते हैं लोग
आज ये फल चख लिया, कल दूसरा फल चख लिया,
अपनी इस आवारगी का भी मजा लेते हैं लोग
इस तरह अपराध करते हैं कि गायब हो गवाह
न्याय घर में शक का पूरा फायदा लेते हैं लोग