भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आइल सुख भादरा गरजे घोर बादला / भवप्रीतानन्द ओझा
Kavita Kosh से
झूमर
आइल सुख भादरा गरजे घोर बादला
एकेली काटब कैसे निशिया
रे पिया भेल परदेशिया
हेरी अंधरिया राती आँखी लोरें भीजे छाती
बिजुलिया उठत झुलसिया रे
गरजे घोर अशनि झींगुर दादुर ध्वनि
सुनी मन लागि उठे हँसिया रे
विरह व्याकुल प्राण मदने हानत वाण
भवप्रीता गति श्याम-शशिया रे।