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आओ ये खामोशी तोड़ें आईने से बात करें / 'महताब' हैदर नक़वी
Kavita Kosh से
आओ ये खामोशी तोड़ें आईने से बात करें
थोड़ी हैरत आँख में भर लें, थोड़ी सी ख़ैरात करें
हिज्र-ओ-विसाल के रंग थे जितने तारीक़ी में डूब गये
तनहाई के मंज़र में अब कौन सा कार-ए-हयात करें
देखो! इसके बाद आयेगी और अँधेरी काली रात
धूप के इन टुकड़ों को चुन लें जमअ यही ज़र्रात करें
प्यासों के झुरमुट हैं और इतना सोच रहे हैं हम
आँखों के इस बोझलपन को कैसे नहर—ए-फ़रात करें
पानी पानी कहने वाले दरिया-दरिया डूब गये
किस मुँह से साहिल वालों से तश्नालबी की बात करें