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आगतपतिका / रसलीन

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आगमही सुनि मनभावन को धन मन चायन चोप चढ़ै।
जिय के हुलास के प्रगटत खन खन (आनन) ओप बढ़ै॥
चुरियाँ करकत नैनहुँ तरकत अँगिअन जोबन रहत मढ़ै।
कंचन सो काया लसत ऐसी लसत मनो बिरह ते ताप कढ़ै॥54॥