भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज सुख सोवत सलौनी सजी सेज पैं / शृंगार-लतिका / द्विज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मनहरन घनाक्षरी
(वसंत से प्रकृति में परिवर्तन का अर्द्धजाग्रत अवस्था में वर्णन)

आज सुख सोवत सलौनी सजी सेज पैं, घरीक निसि बाकी रही पाछिले पहर की ।
भड़कन लाग्यौ पौंन दच्छिन अलच्छ चारु, चाँदनी चहूँघाँ घिरि आई निसिकर की ॥
’द्विजदेव’ की सौं मोहिं नैंकऊ न जानि परी, पलटि गई धौं कबै सुखमा नगर की ।
औंरैं मैन गति, जति रैन की सु औंरैं भई, औंरैं भई रति, मति औंरैं भई नर की ॥१॥