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आदमी रह गया हूँ / केशव शरण
Kavita Kosh से
सरों से
उतारा जा चुका हूँ
दिलों से
निकाला जा चुका हूँ
और अब सड़क पर हूँ
क़ायम मगर
अपनी उसी अकड़ पर हूँ
जो समझौता नहीं करती
विचारों की पतनशीलता से
भावों की
पाशविकता से
इसलिए खेद है कि
अकेला हो गया हूँ
मगर ख़ुशी है कि
आदमी रह गया हूँ