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आनँद को कँद बृषभानुजा को मुखचँद / अज्ञात कवि (रीतिकाल)
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आनँद को कँद बृषभानुजा को मुखचँद ,
लीला ही ते मोहन के मानस को चौरे है ।
दूजो तैसो रचिबो को चहत विरँचि नित ,
ससि को बनावै अजौँ मन को न मोरे है ।
फेरत है सान आसमान पै चढ़ाय फेरि ,
पानी पै चढ़ायबे को वारिधि मे बोरे है ।
राधिका के आनन के सम न बिलोके याते ,
टूक टूक तौरे पुनि टूक टूक जौरे है ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।