भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आवश्यक निवेदन / प्रेमघन
Kavita Kosh से
प्रधान प्रकार की सामान्य लय
धावो भारतवासी भाई! लागो गैय्यन की गोहार॥
अन्न सुतन जाके उपजावत जोतत भूमि अपार।
पियहु दूध घृत खाया जासु तुम सूतहु पाँय पसार॥
दीन बचन उच्चरत चरत तृन करि उपकार हजार॥
अन्तहु मुएँ तुमैं बैतरनी आवत जाय उतार।
सो तुमरी माता निरदोषी के गर फिरत कटार।
देखत तुम पै तनिक न लाजत जिय मैं हा! धिक्कार॥
नगर नगर गोसाला खोलहु रच्छहु हित निरधार।
बरसहु दया प्रेमघन मिलि सब मानौ कही हमार॥149॥