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इंसान / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

मैं बेटी हुई घुट-घुट कर मरने के लिए
मैं बीवी हुई अपना वजूद खोने के लिए

मैं लड़की हुई डर-डर के रहने के लिए
मैं बहू हुई पिसने के लिए

मैं माँ हुई दर दर की ठोकरें खाने के लिए
काश! मैं सिर्फ और सिर्फ इंसान हुई होती

रोती तो हँसती भी रुकती तो चलती भी
घुटती तो खुले में साँस भी लेती

रिश्तों के जाल में उलझकर रह न गयी होती
जीते जी मर न गयी होती

अपना वजूद खो न गयी होती
अगर मैं सिर्फ इंसान हो गयी होती