इक बे-वफ़ा को प्यार किया हाए क्या किया / बेहज़ाद लखनवी
इक बे-वफ़ा को प्यार किया, हाए क्या किया
ख़ुद दिल को बे-क़रार किया, हाए क्या किया
मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा उन का झूट है
इस पर भी ए'तिबार किया, हाए क्या किया
वो दिल कि जिस पे क़ीमत-ए-कौनैन थी निसार
नज़्र-ए-निगाह-ए-यार किया, हाए क्या किया
ख़ुद हम ने फ़ाश-फ़ाश किया राज़-ए-आशिक़ी
दामन को तार-तार किया, हाए क्या किया
आहें भी बार-बार भरीं उन के हिज्र में
नाला भी बार-बार किया, हाए क्या किया
मिटने का ग़म नहीं है बस इतना मलाल ही
क्यूँ तेरा इन्तिज़ार किया, हाए क्या किया
हम ने तो ग़म को सीने से अपने लगा लिया
ग़म ने हमें शिकार किया, हाए क्या किया
सय्याद की रज़ा ये हम आँसू न पी सके
उज़्र-ए-ग़म-बहार किया, हाए क्या किया
क़िस्मत ने आह हम को ये दिन भी दिखा दिए
क़िस्मत पे ए'तिबार किया, हाए क्या किया
रंगीनी-ए-ख़याल से कुछ भी न बच सका
हर शय को पुर-बहार किया, हाए क्या किया
दिल ने भुला-भुला के तिरी बेवफ़ाइयाँ
फिर अहद उस्तुवार किया, हाए क्या किया
उन के सितम भी सहके न उनसे किया गिला
क्यूँ जब्र इख़्तियार किया, हाए क्या किया
काफ़िर की चश्म-ए-नाज़ पे क्या दिल-जिगर का ज़िक्र
ईमान तक निसार किया, हाए क्या किया
काली घटा के उठते ही तौबा न रह सकी
तौबा पे ए'तिबार किया, हाए क्या किया
शाम-ए-फ़िराक़ क़ल्ब के दाग़ों को गिन लिया
तारों को भी शुमार किया, हाए क्या किया
'बहज़ाद' की न क़दर कोई तुम को हो सकी
तुम ने ज़लील-ओ-ख़्वार किया, हाए क्या किया