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इसका कब पक्का नाता है / अश्वनी शर्मा


इसका कब पक्का नाता है
मौसम है, आता-जाता है।

सपने को छोडूं मैं कैसे
एक यही तो मन भाता है।

कोई नदी दीवानी होगी
तभी समंदर अपनाता है।

सन्नाटा चाहे दिखता हो
एक बवंडर गहराता है।

बच्चा सब सीधा बूढ़ा हो
खून रगों में जम जाता है।

जिन्हें चलाना आता, उनका
खोटा सिक्का चल जाता है।

लाख अंधेरों की साज़िश हो
अपना सूरज से नाता है।