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वक़्त से कुछ आगे / अश्वनी शर्मा
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वक़्त से कुछ आगे
रचनाकार | अश्वनी शर्मा |
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प्रकाशक | बोधि प्रकाशन, जयपुर |
वर्ष | सितम्बर, 2011 |
भाषा | हिंदी |
विषय | ग़जल |
विधा | |
पृष्ठ | 88 |
ISBN | 978-93-81596-08-1 |
विविध | काव्य |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- है परत दर परत क्या बना आदमी / अश्वनी शर्मा
- पूरा जीवन दांव लगाते लोग / अश्वनी शर्मा
- सच सचमुच नंगा होता है / अश्वनी शर्मा
- वक़्त हांडी पे चढ़ाया चाहिये / अश्वनी शर्मा
- सच को कैसे ढोना जी / अश्वनी शर्मा
- बज़्म में जिक्र आम होता है / अश्वनी शर्मा
- मुझको पानी सा कर गया पानी / अश्वनी शर्मा
- घर तो है, दीवारों सा है / अश्वनी शर्मा
- दर्द जब बेजुबान होता है / अश्वनी शर्मा
- हम भी आदी हैं आजमाने के / अश्वनी शर्मा
- हंसते-गाते, खाते-पीते, नये-पुराने लोग / अश्वनी शर्मा
- इसका कब पक्का नाता है / अश्वनी शर्मा
- बात को यूं तो जमा ले जायेंगे / अश्वनी शर्मा
- रिश्ते सूखे फूल गुलाबों के / अश्वनी शर्मा
- मजमा जमा के बेच / अश्वनी शर्मा
- वक़्त के मारे मिलेंगे / अश्वनी शर्मा
- जब कभी हालात ने तोड़ा-मरोड़ा आदमी / अश्वनी शर्मा
- कुछ जिक्र नहीं शामिल इसका तो हवालों में / अश्वनी शर्मा
- क्यों रास आये उनको तुर्शी कलाम की / अश्वनी शर्मा
- ये पीना भी कोई पीना होता है / अश्वनी शर्मा
- रस्ते-रस्ते बात मिली / अश्वनी शर्मा
- फूल, गुलशन, चांदनी, गुलज़ार की बातें करें / अश्वनी शर्मा
- वक़्त बहे गंदी नाली सा / अश्वनी शर्मा
- कब से बैठे बाट निहारे, अब तो आओ सावन जी / अश्वनी शर्मा
- हदे निगाह से आगे भी जो नुमाया है / अश्वनी शर्मा
- ये बात अवामी है / अश्वनी शर्मा
- बच नहीं पाती अघातों से जि़न्दगी / अश्वनी शर्मा
- सन्नाटे पर नाज़ नहीं / अश्वनी शर्मा
- सुहानी शाम है, चले आओ / अश्वनी शर्मा
- बाकी रहे अल्फाज के, मानी, सहेजिये / अश्वनी शर्मा
- न जाने कौन जिद ये ठाने हैं / अश्वनी शर्मा
- ख़त आता था / अश्वनी शर्मा
- राम कसम है, राम भरोसे / अश्वनी शर्मा
- घुट-घुट जीना भी क्या जीना है प्यारे / अश्वनी शर्मा
- स्वीकार कर के देख / अश्वनी शर्मा
- नफरतो से जब कोई भर जायेगा / अश्वनी शर्मा
- ये वक़्त ठहर जाये थोड़ी सी जो शाम आये / अश्वनी शर्मा
- अहसास ये मुसलसल किसने जीया नहीं / अश्वनी शर्मा
- जीने की ज़िन्दगी को कोई वजह तो दे / अश्वनी शर्मा
- किश्तों-किश्तों, थोड़ा मरता, थोड़ा जीता हूं / अश्वनी शर्मा
- शब्दों से आगे कहना है / अश्वनी शर्मा
- गो कहन में इल्म का साया नहीं / अश्वनी शर्मा
- हादिसों का चार सू इमकान है / अश्वनी शर्मा
- गो फलक पर चांद-तारे कम नहीं / अश्वनी शर्मा
- ख़्वाबों को रख दिया है हमने संभाल के / अश्वनी शर्मा
- फिक्रमंदों का अज़ब दस्तुर है / अश्वनी शर्मा
- यूं तो मंजि़ल को जान लेते हैं / अश्वनी शर्मा
- है ये ऐलां जरूरी सुनो साहिबो / अश्वनी शर्मा
- अब ज़िन्दगी के मायने क्या सोचता तो हूं / अश्वनी शर्मा
- संभले नहीं संभाली रेत / अश्वनी शर्मा
- वो आदम तो जमा जमाया है / अश्वनी शर्मा
- मैंने जाने लिखा क्या / अश्वनी शर्मा
- इधर संभलना उधर गिराना दिखता है / अश्वनी शर्मा
- सिढ़ियां कंधों को वो करता गया / अश्वनी शर्मा
- बिना बात की बातें कब तक / अश्वनी शर्मा
- वो परचम वाले, परचम लहराते आयेंगे / अश्वनी शर्मा
- आसमां बिजलियों से जो डर जायेगा / अश्वनी शर्मा
- जो कहा, वो कह न पाया हो गया / अश्वनी शर्मा
- मेरे कारण कानूनों का जंगल है / अश्वनी शर्मा
- जब से कोलोनी मुहल्ले हो गये / अश्वनी शर्मा
- जो कहता हूं, कब कहता हूं / अश्वनी शर्मा
- लाल, हरा, नारंगी, नीला, पीला है / अश्वनी शर्मा
- सांस मेरी और पहरा आपका / अश्वनी शर्मा
- गोपीचन्दर, हरा समंदर / अश्वनी शर्मा
- मुंह बाकी, जुबान बाकी है / अश्वनी शर्मा
- जब वहम उसका यकीं बन जायेगा / अश्वनी शर्मा
- बात-बात में लाचारी हो, ऐसा क्यों / अश्वनी शर्मा
- मंजि़ल का तो पता ठिकाना कहीं नहीं / अश्वनी शर्मा
- वैसे का वैसा है होरी, सुन बाबा / अश्वनी शर्मा
- बहुत जमीनी ये खुद्दारी है यारो / अश्वनी शर्मा
- मुझसे डर और मुझे डरा तू / अश्वनी शर्मा
- धूप कच्ची औ कुहासा बस जरा सा / अश्वनी शर्मा
- अब भी ऐसे कई जियाले हैं / अश्वनी शर्मा
- घाटे का ज़िन्दगी भी इक कारोबार है / अश्वनी शर्मा
- सुर्ख पत्तों सी सांस चलती है / अश्वनी शर्मा
- मौज में आ, खुब आई बारिशें / अश्वनी शर्मा
- तस्वीरें जिनकी छपती अख़बारों में / अश्वनी शर्मा
- शब्द कहां बेमानी होंगे / अश्वनी शर्मा
- जब कभी भी आजमाया जायेगा / अश्वनी शर्मा
- दोस्तों की यूं कमी खलती नहीं / अश्वनी शर्मा
- वो कहते हैं जीवन का आधार नहीं है / अश्वनी शर्मा
- चैपालों की काया कम होती जाती है / अश्वनी शर्मा