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इधर संभलना उधर गिराना दिखता है / अश्वनी शर्मा


इधर संभलना उधर गिराना दिखता है
मर-मर कर वापिस जी जाना दिखता है।

इक बूढ़े चेहरे को पढ़ना आये तो
हर झुर्री में एक ज़माना दिखता है।

एक कहानी नानी की सुन जो सोता
उसे ख़्वाब में एक ख़जाना दिखता है।

बिस्तर की सलवट को कितना ठीक करो
जब चादर का रंग पुराना दिखता है।

जब कोई गुलशन की बातें करता है
मुझको तो बस एक बहाना दिखता है

कल तक वो सच्चा इंसा कहलाता था
गलियों में जो एक दीवाना दिखता है।

देख फिज़ा में ये दहशत का साया है
शहर नहीं अब गांव निशाना दिखता है।