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सुहानी शाम है, चले आओ / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
सुहानी शाम है, चले आओ
तुम्हारे नाम है, चले आओ।
वक्त के पार क्या है, देखेंगे
ये एक जाम है, चले आओ।
हाथ में हाथ लेके बैंठेगे
ये एक काम है, चले आओ।
घड़ी कब वक्त को चलाती है
वक्त बेदाम है, चले आओ।
एक मुट्ठी में आसमां भरना
ये इक मुकाम है, चले आओ।
मेरे जुनूं का इम्तिहां होगा
बुझी-सी शाम है, चले आओ।
एक आगाज़ हमने सोचा था
अब तो अंज़ाम है, चले आओ।