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न जाने कौन जिद ये ठाने हैं / अश्वनी शर्मा


न जाने कौन ज़िद ये ठाने हैं
मेरे दिल को मकान माने हैं।

खेल बाजीगरी का जाने है
वक्त उसको महाने माने हैं।

बोलता है सुना ये सन्नाटा
एक वादी है औ तराने हैं।

मै हूं सागर, नदी हो तुम कोई
जो है मिलना तो क्या बहाने हैं।

ये मोहब्बत तो बस मोहब्बत है
न कोई राज, जो छिपाने हैं।

तुम्हें अंदाज हो न हो शायद
सिलसिले हैं जो, ये पुराने हैं।

ये चलन तो चलन रहे चाहे
कुछ चलन और भी चलाने हैं।