न जाने कौन ज़िद ये ठाने हैं
मेरे दिल को मकान माने हैं।
खेल बाजीगरी का जाने है
वक्त उसको महाने माने हैं।
बोलता है सुना ये सन्नाटा
एक वादी है औ तराने हैं।
मै हूं सागर, नदी हो तुम कोई
जो है मिलना तो क्या बहाने हैं।
ये मोहब्बत तो बस मोहब्बत है
न कोई राज, जो छिपाने हैं।
तुम्हें अंदाज हो न हो शायद
सिलसिले हैं जो, ये पुराने हैं।
ये चलन तो चलन रहे चाहे
कुछ चलन और भी चलाने हैं।