भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न जाने कौन जिद ये ठाने हैं / अश्वनी शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


न जाने कौन ज़िद ये ठाने हैं
मेरे दिल को मकान माने हैं।

खेल बाजीगरी का जाने है
वक्त उसको महाने माने हैं।

बोलता है सुना ये सन्नाटा
एक वादी है औ तराने हैं।

मै हूं सागर, नदी हो तुम कोई
जो है मिलना तो क्या बहाने हैं।

ये मोहब्बत तो बस मोहब्बत है
न कोई राज, जो छिपाने हैं।

तुम्हें अंदाज हो न हो शायद
सिलसिले हैं जो, ये पुराने हैं।

ये चलन तो चलन रहे चाहे
कुछ चलन और भी चलाने हैं।